गणगौर मेला स्थल जीर्ण शीर्ण हालत में अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाता नजर आ रहा है....

राजगढ़ सादुलपुर का गणगौर मेला स्थल जीर्ण शीर्ण हालत में अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहाता नजर आ रहा है, मगर नगर पालिका है कि उसके पुनर्निर्माण के दावे करते हुए टेंडर करवाकर चुप बैठ गई है ?
स्वर्गीय जुगल सिंहजी सोनगरा के चेयरमैन कार्यकाल में इस गणगौर मेला स्थल को सावर्जनिक चौक ही घोषित नहीं किया गया था बल्कि पर्याप्त निर्माण कार्य भी करवाया गया था, उसके बाद लगभग यह मेला स्थल उपेक्षित ही रहा।
हालांकि जगदीश बैरासरिया के चेयरमैन काल में भी इस चौक के लिए बजट आवंटित करते हुए उसे खर्च किया गया तथा एक चबूतरा भी बनवाया गया, मगर उस समय भी जन आकांक्षाओं के अनुरूप उतना काम नहीं हो पाया था, जिसकी अपेक्षा थी।
अब स्थिति यह है कि पूरा मेला स्थल जीर्ण शीर्ण बना हुआ है। कुछ दिन नगरपालिका की हुई बैठक में मेला स्थल से संबंधित वार्ड के पार्षद राहूल पारीक तथा पार्षद महेंद्र दिनोदिया ने यह मुद्दा उठाया था। तब यह आश्वासन दिया गया था कि गणगौर मेले से पहले ही इस मेला स्थल को सही सुव्यवस्थित करवा दिया जाएगा। विधायक डॉ. कृष्णा पूनियां ने भी इसी आशय की बात कही थी। इसके बावजूद हालत यह है कि गणगौर मेले के 10 दिन बचे हैं और मेला स्थल की हालत दयनीय बनी हुई है।
अब समझ नहीं आता कि कैसे 10 दिन में यहां पर निर्माण कार्य करवाया जाएगा और कैसे महिलाओं के मेले की व्यवस्था सही तरीके से हो पाएगी ? हालात यह है कि जिस प्राचीन कुएं में गणगौर को विदा करने की रस्म अदा (विसर्जन) की जाती है वह तथा उसके पास स्थित मंदिर टूटा पड़ा है।
इसके अलावा पीपल गट्टा, प्रवेश द्वार तथा चबूतरा भी जीर्ण शीर्ण हालत में है। गन्दगी व अन्य कचरे पड़े हैं, छोटा प्रवेश द्वार कांटों की बाड़ से बन्द किया हुआ है ताकि आवारा पशु घुस ना सके।
हालांकि गणगौर मेले के अवसर पर यहां पर कार्यक्रम होते हैं, मगर इस बार कार्यक्रम हो पाएंगे या नहीं ? यह फिलहाल तो संदिग्ध लग रहा है, अभी तक तो मेले स्थल की स्थिति ऐसी ही है।
इस प्रकार के हालातों के मध्य कुछ जागरूक नागरिक इस मेला स्थल को संभालने का प्रयास कर रहे हैं, जिनमें शेखर पांडिया, ओम सैनी, किशन गर्ग एवं उनके साथी शामिल हैं। जिन्होंने यहां पर कुछ पेड़ लगाए ही नहीं हैं, बल्कि उनकी संभाल भी कर रहे हैं, मगर पूरे मेला स्थल की व्यवस्था संचालन तो नगरपालिका ही कर सकती है।अब इंतजार यही है कि धार्मिक आस्था के मेले की व्यवस्था में नगरपालिका कोई युद्ध स्तरीय कदम उठाकर व्यवस्था कर पाती है अथवा यूं ही मेला रस्म पूरी कर दी जाएगी।

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