सादुलपुर क्षेत्र में रंगीला पर्व होली 10 मार्च को पारंपरिक तरीके से शांतिपूर्वक संपन्न हो गया..
राजगढ़, सादुलपुर क्षेत्र में रंगीला पर्व होली 10 मार्च को पारंपरिक तरीके से शांतिपूर्वक संपन्न हो गया है। हालांकि होली का रंग इस बार फीका रहा इसके बावजूद परंपराओं का निर्वहन किया गया। धूलंडी पर्व (जिसे आंचलिक।भाषा में छारण्डी भी कहा जाता है) रंग गुलाल के साथ मनाया गया।
इस बार छारण्डी पर निकलने वाली गेर नाम मात्र की दिखी, फिर भी मोहता चौक से ना सिर्फ गेर निकली बल्कि रसियाओं ने दोपहर तक गेर का आनंद लिया। जिस कारण ढफ, चंग नगाड़ों की आवाज दोपहर तक गूंजती रही एवं युवकों और बच्चों ने जमकर रंग खेला। यद्यपि अन्य स्थानों पर भी रंगों के साथ होली पर्व का आनंद लिया गया तथा मस्त युवाओं की टोलियां ने घूम घूम कर किसी वायरस अथवा अन्य किसी भय के रंगो का आनंद लिया।इससे पूर्व 9 मार्च को होलिका दहन भी पारंपरिक तरीके से शांतिपूर्वक संपन्न हुआ। हालांकि इस बार होलिका दहन के समय चेयरमैन, वाइस चेयरमैन विधायक आदि कोई मौजूद नहीं थे। इस कारण वाइस चेयरमैन के पुत्र।एडवोकेट प्रमोद पूनियां ने होलिका दहन की रस्म अदा की।
होलिका दहन के समय पुलिस व्यवस्था माकूल थी, मगर ट्रेफ़िक व्यवस्था सुव्यवस्थित नजर नहीं आई, होलिका दहन के समय भी भीड़ के बीच वाहन घुसते दिखे, फिर भी बाकि पुलिस व्यवस्था सुचारू रही, जिसकी कमान स्वयं थानाधिकारी विष्णुदत्त बिधनोई संभाले हुए थे।होलिका दहन के साथ ही प्रह्लाद व शुभ प्रतीक रूपी ध्वजा की प्राप्ति के लिए युवाओं में काफी कशमकश चली।
उल्लेखनीय है कि राजगढ़ में होलिका दहन की जो परंपरा है, वह संभवतया समूचे चूरु जिले और शेखावाटी में अपनी तरह की विशिष्ट परंपरा है। यहां पर होलिका दहन के बाद ध्वजा की प्राप्ति के लिए जिस प्रकार की प्रतिस्पर्धा ही नहीं मारामारी होती है, वह रोचक और रोमांचक होती है। यह परंपरा बीकानेर रियासत काल से ही चली आ रही बताते हैं। होली की ध्वजा को प्राप्त करना शुभ शकुन माना जाता है। इस कारण इस ध्वजा की प्राप्ति के लिए जमकर प्रतिस्पर्धा होती है।
इसके बावजूद होलिका दहन शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। इससे पहले महिलाओं ने ऐतिहासिक होली टीब्बा पर पहुंचकर पूजा अर्चना कर घर परिवार के लिए मंगल कामनाओं की मनौती मांगी।
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